जब तब सर्द
हवा के झोंके
अगल बगल की दीवारों पर
रख जाते हैं
ताक झरोखे
गोल तिकोना
कोई कोना
क्या अब भी बचा रह गया
याद आ रहा जिनका होना
हफ़्ते का सबसे उजाड़ दिन
यह इतवार —
न रुकता, रोके
हाथों की गुमसुम रेखाएँ
लौट रहे सूने पठार से
आधे बच्चे - आधी गायें
आग जलाकर बाट जोहते
कुछ सवाल
ख़ामोश घरों के
- देवेन्द्र
कुमार बंगाली
१ दिसंबर २०१९