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        शीत लहर

 

ओढ़े पीली चुंदरी कोमल गात वाली
भली लगे अति शीत में धूप गुनगुनी वाली

बादलों की खिड़की से
चमके सोन मणियाँ
छितरी यहाँ आंगन में
सेहरे की लड़ियाँ
नील गगन के ताल में
चमके सूर्य थाली

अभी यहाँ थी अब वहाँ
जैसे चंचल हिरणी
पलक झपकते गुम हुई
दूर मुंडेर खड़ी
लम्बे- लम्बे डग भरे
उमर इसकी बाली

पहरा देता कोहरा
सूरज की देहरी
निकली छिप-छिप कर किरण
नमी आँख में भरी
भागा-भागा दिन फिरै
खोजे भोर लाली

डरें सहमें से पत्ते
फूल साधे चुप्पी
झेलें बगियाँ रात भर
सर्द हवा की झप्पी
टपकाये ओस टसुएँ
हँसे धुंध मवाली

- त्रिलोचना कौर
१ दिसंबर २०२०

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