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        शीत ऋतु का गीत

 

शीत ऋतु का हर जगह
वर्चस्व स्थापित हो गया है

धुंध चारों ओर छाई श्वेत आभा साथ लेकर
रात बीती जा चुकी है शांति का संदेश देकर
ओस का भी रजत वर्णी रूप
मधुरिम हो गया है

झाँकने लगती सुबह जब सूर्य की किरणें सुनहरी
बादलों में सिमट आती लालिमा ले खूब गहरी
दृश्य की सुन्दर छटा में मन
सभी का खो गया है

पास मिल कर बैठने का भी समय अब जा चुका है
रोग कोरोना भयानक संक्रमण जब छा चुका है
भय भरे वातावरण में मन
सशंकित हो गया है

गर्म वस्त्रों की जरूरत है सभी महसूस करते
ढाँपकर अपने बदन को राह जीवन पर विचरते
वक्त के अनुरूप सबका ही
चलन अब हो गया है

- सुरेन्द्रपाल वैद्य
१ दिसंबर २०२०

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