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खिली धूप में |
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खिली धूप
में बाहर निकलें
बैठें, बतियाएँ!
बासी सपनों को दुलराएँ
हवा लगाएँ जी
तन के पुर्जों को थोड़ा-सा
हिला, डुलाएँ जी
चटखारे ले ले खबरों को
बेपर दोड़ाएँ!
टूँगें मूँगफली, रेबड़ियाँ
मिलकर के खाएँ
ले ले चुस्की अदरक वाली
सुड़क-सुड़क जाएँ
मौका लगते एक नहीं फिर
दो-दो हथियाएँ!
"घर के बाहर बैठ सभी मिल
आग जलाते थे
दिन भर के किस्से, खबरों से
भी जुड़ जाते थे"
जी चाहे जब इन यादों में
डूबें,उतराएँ!
- डा रामेश्वर प्रसाद सारस्वत
१ दिसंबर २०२० |
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