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       है दिसंबर का महीना

 

है दिसंबर का महीना

शीत लहरी
हो गई स्वच्छंद, नदिया बहुत काँपी
थरथराती झील किसने बर्फ की चादर से ढाँपी
मन कबूतर दुबक कर बैठे घरों में, कोटरों में
राहतें उसको मिलीं जिसने कि
तन में अग्नि तापी

सुखद लगता
छाँट कोहरा सूर्य का नभ में निकलना
पढ़ रही हैं धूप किरणें हाथ में रक्खी सफ़ीना
है दिसंबर का महीना

कल चमक कर
सूर्य ने था शौर्य अपना भी दिखाया
तितलियों के पंख चमके पक्षियों ने सुख मनाया
उंगलियों में ऊष्मा भर कुछ नये सपने जगे थे
रात थक जो सूर्य सोया भोर जल्दी
उठ न पाया

आँख खोली
सामने थी बादलों की एक सेना
देख धरती को सका न बीच में पर्दा था झीना
है दिसंबर का महीना

-डा मंजु लता श्रीवास्तव
१ दिसंबर २०२०

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