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इतना घना कुहासा |
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इतना घना
कुहासा
सूरज
खुद भी काँप गया
सड़कों से भीड़ें ग़ायब, सब
जोडे गायब थे
सूरज के अपने रथ वाले घोड़े गायब थे
खिड़की खोली, शीत हवा ने
चाँटा दे मारा
सूरज भूल सुबह वाला अपना
आलाप गया
हुई दुपहरी, फिर सूरज ने
खिड़की से झाँका
अब तो कोहरे का कमज़ोर
लगा डेरा, नाका
उसने धूप बिखेरी, पूरी धरती
पर कस के
कोहरा भागा, वो सूरज का ग़ुस्सा
भाँप गया
एक चाय की गरम प्याली ने
ली अँगड़ाई
बड़ी नज़ाकत से हाथों में मचली
मुस्काई
सुडकी मारी एक, गला तर थोड़ा
गरम हुआ
जाड़ा घबरा कर अपने घर
सरपट आप गया
कृष्ण भारतीय
१ दिसंबर २०२० |
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