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        सर्दी के दिन

 

लो आये ठंडे पल छिन
लम्बी रातें छोटे दिन
फिर सर्दी के दिन

सिकुड़े सिमटे घर के अंदर
धूप रिझाती रहती बाहर
जहाँ दिखाते हैं छवि दिनकर
खिलता वहीं नलिन

सब सिगड़ी अलाव को घेरे
किस्सों के चलते हैं फेरे
गज़क रेवड़ी मूंगफली को
सबकुछ है मुमकिन

गर्म चाय का मिले जो साथ
काजू किशमिश हाथों हाथ
सर्दी भी लगती है प्यारी
समय शिकायत बिन

रूई के फाहे से लगते
नर्म श्वेत जो हिम कण झरते
नाचे भूमि ओढ़ के चादर
ताक धिना धिन धिन

- ज्योतिर्मयी पंत
१ दिसंबर २०२०

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