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        धूप प्रेयसी

 

धूप प्रेयसी आँगन उतरी
कुहरे का पट खोल
मिलने निकल पड़े सब बाहर
यह पल है अनमोल

नर्म गुनगुनी धूप सुहाती
सहलाती तन-मन को
बचपन सी चंचलता देती
कठुआए जीवन को

रह रह कर है बैरन पछुआ
देती ठंडक घोल
धूप प्रेयसी आँगन उतरी
कुहरे का पट खोल

बाटी चोखा दिन में जमता
बीच-बीच में चाय
बच्चे छत पर गुड्डी ताने
पेंचा रहे लड़ाय

हुई शाम, घर में घुस जाते
दरवाज़ा मत खोल
धूप प्रेयसी आँगन उतरी
कुहरे का पट खोल

- अनुराग तिवारी
१ दिसंबर २०२०

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