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सर्दी का मौसम |
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ओढ़ धुंध का
कंबल आया
सर्दी का मौसम
आवारा हो गयी हवा है
चलती सनन सनन
कोहरे ने अतिक्रमण किया है
घर बस्ती ओझल
जकड़ देह ली ठिठुरन ने, गुम
साँसों की हलचल
सटी पेट से पीठ और है
जिसकी झुकी कमर
उसी दीन पर इस ऋतु का है
सबसे विकट असर
फाग खेलती क्षुधा उदर में
करे क्रूर नर्तन
पारे का पारा उतरा घन
कुहरा गया पसर
उत्पाती मौसम में खग पशु
काँप रहे थर - थर
जले अलाव नहीं दीखते
कैसी विकट विपद
सुप्त पड़ रहीं धमनी, मौसम
तोड़ रहा हर हद
अपने पंजों में भींचे हर
निर्धन की गर्दन
हुयी प्रौढ़ आजादी लेकिन
दृश्य वही परिचित
जितने हाकिम आये सबने
साधे अपने हित
बना चौहत्तर सालों में
कौन भला संबल
काटें रात पूस की,अनगिन
हल्कू बिन कंबल
हर वादेदारों का आखिर
निकला शून्य फलन
- अनामिका सिंह अना
१ दिसंबर २०२० |
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