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        सर्दी फिर आई

 

बीत गईं बरसात अब लो धरती मुस्काई
लेकर सुखमय धूप गुनगुनी
सर्दी फिर आई

सिमट चले यौवन व्यतीत कर
सर सरिता सारे
पुलक भरे वादी की युति में
कुसुम रंग न्यारे

रात सितारों भरा थाल ले
फिरती इतराई

सरपट लगे भागने दिन तो
रजनी इठलाये
सूरज अलसाया तो चंदा
छेड़े मुस्काए

ओस गिरे यों साँझ पसीजे
रात थरथराई

चूल्हे पे मक्के की रोटी
सरसों वाला साग
गुड़ की भेली मक्खन ताजा
खट्टी सौंधी छाछ

पेट भरे पर मन न माने
ऐसी रुत आई

- अमित खरे
१ दिसंबर २०२०

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