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        कोई नई सरगम

 

भा गया है मन को मेरे
ठंड का मौसम
गुनगुनाती धूप भी
कोई नई सरगम

इंद्रधनुष कमान-सा आकाश में
सरसराई है हवा कुछ पास में
है हवा पुरवायी या फिर
चल रही पच्छम?

चाय की चुस्की कुलाँचें भर रही है
चाय में अदरख भी जादू कर रही है
कैसा जाने ठंड का
मचने लगा ऊधम

मोतियों से शबनमी क़तरे गिरे है
कोहरे की मार से जैसे डरे हैं
बूँद भी बारिश की क्यों
अब लग रही बे-दम?

- आभा सक्सेना दूनवी
१ दिसंबर २०२०

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