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        लौट आया दिसंबर

 

भाग जागे सिगड़ियों के
आ गए दिन सर्दियों के

लौट आया है बिताकर
साल पूरा फिर दिसंबर
ओस ओढ़े सुबह आती
जा छुपा, सूरज दुबक कर
कर रहा अगहन शिकायत
कोहरे की तल्ख़ियों के

सुबह भीगी, साँझ सीली
दोपहर बस एक नेमत
बाँचती है इन दिनों फिर
धूप, रातों के सभी खत
आजकल दिन भा रहें हैं
मूंगफलियों, चटनियों के

हैं बगीचों में बहारें
फूल-पौधे, रंग, खुशबू
पाँव नीचे हों गलीचें
बिछ गई है दूब हर-सू
ओस लिखती पत्तियों पर
गीत मधुरम रश्मियों के

मेज खाने की सजे जब
दाल, सरसों साग महके
जम गयी महफ़िल बड़ी पर
आग हुक्के की न दहके
चल रहें किस्से, कहानी
चाय वाली चुस्कियों के

- आभा खरे
१ दिसंबर २०२०

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