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        सूरज है पाबंद

 

मौसम ने फिर धर लिया,है सतरंगी रूप
सर्दी लेकर आ गयी, झीनी-झीनी धूप

कुहरे की चादर घिरी,सूरज है पाबंद
सन्नाटा हर ओर है, जैसे दुनिया बंद

ऋतु शारदीय आ गयी, लेकर शीत अपार
स्वेटर, शॉल, रजाई का,चल निकला बाज़ार

कंपती धरती कर रही, सूरज से तकरार
मनमानी पर है तुली, जाड़े की सरकार

अम्मा स्वेटर बुन रहीं,नयी डिजाइन संग
नेह-स्नेह की ऊन में, खिले प्रेम के रंग

फूल-पत्तियों पर सजी, मोती जैसी ओस
प्रकृति के सौंदर्य पर,मौसम भी मदहोश

बादल-कुहरे ने रची, फिर साज़िश भरपूर
धरती पर कैसे खिले, सूर्य किरण का नूर

हाड़ कँपाती ठंड हो, या झुलसाती धूप
मानव के हित में सदा, कुदरत का हर रूप

अब तक रहता था छिपा,वो देखो इठलाय
सरदी में सब पी रहे, मन से गुड़ की चाय

गरमी-सरदी का रहे, या मौसम बरसात
निर्धन पर करता रहा,हर कोई आघात

जगह-जगह पर जल रहे,राहत भरे अलाव
संग देह के तप रहे, मौसम के सब घाव

- सुबोध श्रीवास्तव
१ दिसंबर २०२०

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