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        सर्दी का त्यौहार

 

सुबह ठुमकती आ गई तम से कर किलोल
पंख पसारे रश्मियाँ स्वर्ण कुण्ड निर्मोल

कुहरे में लिपटी हुई सजकर आई भोर
धूप चिट्ठियाँ बाँचती कोमल कमसिन डोर

बाँच रहा है धुंध को किरणों का संसार
ओढ़ रजाई प्रीत की सर्दी आयी द्वार

पत्र ख़ुशी के लिख रहा सर्दी का त्यौहार
रंग गुलाबी बाग़ में गंधो का उपहार

कुहरे में लिपटी हुई छनकर आयी भोर
नुक्कड़ पर मचने लगा गर्म चाय का शोर

तन को सहलाने लगी मदमाती सी धूप
सरदी हंटर मारतीहवा फटकती सूप

धूप चिरैया ने लिए अपने पंख पसार
पात पात भी कर रहे किरणों से अभिसार।

ओढ़ चुनरिया प्रीत की सजकर आई भोर
धूप रंगोली द्वार पर मन है आत्मविभोर

भीगी भीगी सी फिजा ना पंछी का गान
सर्द हवाएँ कह रहीं दिनकर को अभिमान

सर्द हवा में ठिठुरते भीगे से एहसास
सुरभित फूलों से सजा यादों का मधुमास

तन को सहलाने लगी मदमाती सी धूप
सरदी हंटर मारती हवा फटकती सूप

दिन सर्दी के आ गए तन को भाये धूप
केसर चंदन लेप से ख़ूब निखरता रूप

पीले पत्रक दे रहे शाखों को पैगाम
समय चक्र थमता नहीं चलते रहना काम

- शशि पुरवार
१ दिसंबर २०२०

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