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गरमाहट हर ओर |
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शीत लहर
बुनती रही, गर्माहट हर ओर
कुपित शिशिर ने छीन ली, खग वृंदों का शोर
अँगड़ाई भँवरा भरे, सम्मुख शिशिर प्रभात
पी पराग फिर चूम लूँ, जा कलियों के गात
विविध रंग ले रश्मियाँ, रहीं रँगोली पूर
ओस कनक-हीरक हुई, शिशिर सुखद भरपूर
ओढ़ रजाई पड़ रहे, सर से ऊपर तान
दुश्मन जैसे लग रहे, पहुँचे जब मेहमान
धूप गुनगुनी शिशिर की, लेती मन को मोह
बैरी शीतल यह पवन, लेती मन की टोह
दिन छोटे रातें बड़ी, धूप रही मन भाय
स्वेटर - टोपी आ गए, शिशिर रहा मुस्काय
आँखें भी तकने लगीं, आहट पर हैं कान
शिशिर शाप कट जाएगा, प्रियतम हैं वरदान
भरता, रोटी घी लगी, चटनी जो मिल जाय
ठण्ढक का आनंद है, सेहत खूब बनाय
- अनिल कुमार मिश्र
१ दिसंबर २०२० |
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