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        दिन हुआ है सर्द

 

दिन हुआ है सर्द मौसम जर्द सा है
इस सुबह की ओस में इक दर्द सा है

फुनगियों पर पेड़ की उड़ती तितलियाँ
ख़ुशनुमा रंगत किसी हमदर्द सा है

काँपती-सी है ठिठुरती साँझ भी अब
डूबता सूरज हवा में गर्द सा है

सर्दियों का सख़्त तेवर जब हुआ
हम ग़रीबों के लिए पुरदर्द सा है

कोहरे की धुँध में सड़कें हुई गुम
ज़िंदगी का यह सफ़र बेदर्द सा है

कुनमुनी सी गुनगुनी सी है अमीरी
उन लिहाफ़ों में सूँकू भी फ़र्द सा है

गर्म है जबसे अलावी कहकहे ये
ठंड का उस्ताद भी शागिर्द सा है

- रंजना गुप्ता
१ दिसंबर २०२०

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