विजयदशमी में
विजयदशमी में राघव फिर धराशायी करें
रावण,
मिटाएँ पाप हर संताप हो जाए धरा पावन।
इसी आशा में प्राणी आँसुओं को
पोंछते आए,
अनाचारी सितम जुल्मी पुलिंदा ओढ़ते आए।
कभी तो अंत हो उनका जहाँ का साफ़
हो दामन,
विजयदशमी में राघव फिर धराशायी करें रावण।
अगर मिट जाएँ पीड़ाएँ, सितम मिट
जाए बरबादी,
मिले चोरी, डकैती, खौफ़ नफ़रत दुख से आज़ादी।
पढ़े गुरुग्रंथ, बायबिल बाँच ले
कुरान, रामायण,
विजयदशमी में राघव फिर धराशायी करें रावण।
रहें भूखा न कोई आए सबके घर में
खुशहाली,
भले कर्मों की जय हो देख हो दुष्कर्म से खाली।
यही संदेश देता है दशहरा सबका
मनभावन,
विजयदशमी में राघव फिर धराशायी करें रावण।
--डॉ. सुरेश प्रकाश शुक्ल |