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यह जीवन है संग्राम |
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यह जीवन है संग्राम प्रबल
लड़ना ही है प्रतिक्षण प्रतिपल
जिसने मन में गीता गुनली वह हार-जीत के पार गया
वह हार गया रण में जिसका लड़ते-लड़ते
मन हार गया
संख्या बल कभी नहीं लड़ता
लड़ते हैं सौ या पाँच कहाँ
सच के पथ पर निर्भीक बढ़ो
है नहीं साँच को आँच यहाँ
जो चक्रव्यूह गढ़ते उनके माथे पर लिखा मरण देखा
जो सुई नोक भर भूमि न दें उनका भी दीन क्षरण देखा
छल के ही साथ छली का तन, मन, चिन्तन,
अशुभ विचार गया
संकल्पों से टकराने में
हर बार झिझकती झंझाएँ
झरने की तूफानी गति को
कब रोक सकीं पथ बाधाएँ
जो लड़ते हैं वे कल्पकथा बनकर जीते इतिहासों में
सदियों के माथे का चुम्बन बनकर जीते अहसासों में
कवि का संवेदन विनत हुआ जब-जब भी
उनके द्वार गया
- रामसनेहीलाल शर्मा यायावर
१ अक्टूबर २०२१ |
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