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        विजय पताका

 
रात का तम तोड़ के
इन बादलों को फोड़ के
दिनकर निकल ही आएगा
फिर से उजाला छाएगा

झूठ के बंधन कटेंगे
पाप दुनिया से मिटेंगे
घेरते इस विश्व को जो
जुल्म के बादल छँटेंगे
मोड़ दें धारा समय की
पथ नया मिल जाएगा
फिर से उजाला छाएगा

रावणों का अंत होगा
मुस्कुराता संत होगा
शुष्क होते उपवनों में
खिल रहा बसंत होगा
समर करता जो असत से
राम वो कहलाएगा
फिर से उजाला छाएगा

धर्म का दीपक जलेगा
कर्म का सम्मान होगा
स्त्रियों का मान होगा
राष्ट्र का गुणगान होगा
विजय की थामे पताका
हर कोई मुस्काएगा
फिर से उजाला छाएगा

- रेखा राजवंशी
१ अक्टूबर २०२१

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