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        और विजय के उत्सव कितने

 
जगती में जन्मे हैं कितने
रावण, राम सहोदर लक्ष्मण
हर मन में पल रहे राम हैं
रावण भी बनते हैं क्षण-क्षण

पित्राज्ञा पालन करने को
मेघनाद बनते हैं कितने
और विजय के उत्सव कितने

क्या औचित्य कहो पुतले से
हमने ही तो खड़ा किया है
हमीं गिराते धम्म धरा पर
हमने ही ये जतन किया है

प्रतिपल जलते इस रावण से
मन के पाप जले हैं कितने
और विजय के उत्सव कितने

सच पूछो तो हमको प्यारा
आयोजन का पूरा होना
हो जाये सब काम ठीक से
भरा मान से कोना-कोना

अरे! राम, लक्ष्मण, रावण से
सच बोलो! सुधरे हैं कितने
और विजय के उत्सव कितने

- गणतंत्र ओजस्वी
१ अक्टूबर २०२१

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