अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

        सच की विजय

 
भरी दुपहरी में असुर, फैलाएँ अंधियार
आओ माँ! करने अभी, इनका तुम संहार

मन के रावण में भरे, ईर्ष्या, विषय विकार
बस अंतस नौ रूप में, कर माँ! शुद्ध विचार

शक्ति उपासक हैं खड़े, माता के दरबार
सभी अधर्मों का करो, माँ विनाश इस बार

दूर बुराई सब करें, तभी मिलेगें राम
अहं मिटा लंकेश का, बना स्वर्ग भू-धाम

सरहद पर सेना खड़ी, लिए संकल्प जीत
फर्ज निभाए ताउमर, करे देश से प्रीत

विजयादशमी पर्व पर, जलता है लंकेश
होती है सच की विजय, यही मंजु 'संदेश

- डॉ मंजु गुप्ता
१ अक्टूबर २०२१

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter