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सच की विजय |
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भरी दुपहरी में असुर, फैलाएँ
अंधियार
आओ माँ! करने अभी, इनका तुम संहार
मन के रावण में भरे, ईर्ष्या, विषय विकार
बस अंतस नौ रूप में, कर माँ! शुद्ध विचार
शक्ति उपासक हैं खड़े, माता के दरबार
सभी अधर्मों का करो, माँ विनाश इस बार
दूर बुराई सब करें, तभी मिलेगें राम
अहं मिटा लंकेश का, बना स्वर्ग भू-धाम
सरहद पर सेना खड़ी, लिए संकल्प जीत
फर्ज निभाए ताउमर, करे देश से प्रीत
विजयादशमी पर्व पर, जलता है लंकेश
होती है सच की विजय, यही मंजु 'संदेश
- डॉ मंजु गुप्ता
१ अक्टूबर २०२१ |
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