विजयदशमी की कविताओं का संकलन
 

 

राम की चिरैया

राम की चिरैया देखो
उड़ गयी रे...

दुःख से सीखे, दुःख से जागे
दुःख ने दी गहराई
सुख की अपनी बात अलग पर
झोली ना भर पाई
कब जाने जीवन की कड़ियाँ
धूप-छाँव से
जुड़ गयी रे...

जाने जब अपना ये मन तो
जग है एक छलावा
मोह माया के फेर ने फिर भी
कैसा दिया भुलावा
आँखे फिर-फिर माया वाले
हिरना ही से
जुड़ गयी रे...

-रोहित रुसिया


 

 

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