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जन्म लिए श्रीराम
शुक्ला नवमी चैत्र की, जनम लिए श्रीराम।
गूँज उठी किलकारियाँ, हरषा रघुकुल धाम।।
स्वागत में लहरा गए, फूले हुए पलाश।
खग के मंगलगान से, मुदित हुआ आकाश।।
हुलसी धारा गंग की, सुरभित हैं ऋतुराज।
चहक रही है वाटिका, प्रभु आए हैं आज।।
श्यामल छवि श्रीराम की, कुंतल सोहे भाल।
गाकर मीठी लोरियाँ, माता हुईं निहाल।।
जनक राज दरबार में, बैठे बली महान।
तोड़ दिए
शिव-चाप को, सहज भाव से राम।।
ब्रह्मा के संसार में, सत्य एक ही नाम।
देते हैं विश्राम जो, कहते उनको राम।।
हृदय बसाए प्रेम से, रघुनन्दन के चित्र।
मिलें हमें संसार में, महावीर सम मित्र।।
-ऋता शेखर ‘मधु’ |
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