विजयदशमी की कविताओं का संकलन
 

 

यों ही नहीं राम जा डूबे

यों ही नहीं राम जा डूबे
सरजू जी के घाट !

दिन भर राजपाट
की खिटखिट जनता के परवाने
मातहतों का कामचोरापा, फिर धोबी के ताने
लोग समझते राजा जी तो
भोग रहे हैं ठाट !

था आसान
कहाँ त्रेता में भी तब राज चलाना
शेर और बकरी को पानी एक घाट पिलवाना
ऊपर से भरमाने वाले
कितने चारण-भाट !

हारे-थके
महल में पहुँचें तो सूना संसार
सीता की सोने की मूरत दे सकती न प्यार
ऐसे में क्षय होना ही था
वह व्यक्तित्व विराट !

-ओमप्रकाश तिवारी


 

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter