विजयदशमी की कविताओं का संकलन
 

 

भगवन कब लोगे अवतार

एक दशहरा और आ गया, सोच के मन में उठे विचार
इतने रावण घूम रहे हैं भगवन !
कब लोगे अवतार

आतंको से
आतंकित है, बस्ती, कस्बा, गली, मोहल्ला
चारो ओर मचा है देखो, छीना-झपटी, हल्ला-गुल्ला
झूठ की जय-जयकार हो रही, सत्य सनातन आहत है
पापी नाच रहें हैं, धुन पर, भलमानस की दुर्गत है
सालो-साल बढ़ रहे रावण, जो कल-
सौ थे, हुए हज़ार


रावण के जड़ से
विनाश का, वो दिन प्रभु कब आएगा
त्रेता युग की रामायण को, कलयुग कब दोहराएगा
जाति-पाँत, ईमान-धरम, से कब पहरे हट जाएँगे
शबरी का विश्वास जीतने कब पुरुषोत्तम आएँगे
जाति धर्म को पीछे कर के, जिसने
अपनाया था प्यार

मानव को
मानव से भय है, भाई को भाई पर शंका
शोर-शराबा, मारा काटी, हुई अयोध्या भी अब लंका
क्यों विभीषण रोज हैं, मरते, सत्य का जो दामन पकड़े
रोज हरण होता है सिय का, क्यों हैं राम अबूझ पड़े
बड़ी ज़रूरत आन पड़ी है, फिर से
ले लो प्रभु अवतार


आज भी कुछ
भूखे सोते हैं, कहने को विकास है बस
कुछ महलों में राज कर रहे, कुछ झोपड़ियों में बेबस
आँखों में बस एक आस है, दुख के बादल कब जाएँगे
कब आएँगे रामचंद्र जी, रामराज्य को कब लाएँगे
इसी दशहरे पर आ जाओ, साथ
मनाते हैं त्योहार

- विनोद कुमार पांडेय


 

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