विजयदशमी की कविताओं का संकलन
 

 


हँसता है रावण


लाखों रावण जले देश में फिर भी हँसता है रावण
मारो जितना, नहीं मरूँगा हक से कहता है रावण

मेरी कितनी ऊँचाई है जा कर पुतलों में देखो
हारोगे ही चूँकि सबके दिल में बसता है रावण

एक बार सीता को हरने वेश धरा था जोगी का
वैसे ही अब संत-वेश में घर घर ठगता है रावण

देश भक्ति की खाल ओढ़कर काम करें गद्दारी का
बाद खुलासा होने के ही सचमुच दिखता है रावण

रोता है यह सुमन देखकर कैसे हैं हालात अभी
अपनी खूबी को पन्नों में देखो लिखता है रावण

- श्यामल सुमन


 

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