विजयदशमी की कविताओं का संकलन
 

 

रामायण पावन लिखी (कुंडलिया)


रामायण पावन लिखी, कथा सरस सुख-धाम,
श्वास श्वास सीता बसीं, रोम रोम में राम।
रोम रोम में राम, समय ने फेरा डाला,
भूल गए प्रभु नाम, छकी जब सुख की हाला,
पाएँ व्यथा अपार, करें फिर नित पारायण,
दहकर कलुष विचार, बने यह तन रामायण।


रामा दल में धूम है, प्रमुदित सकल समाज,
प्रभु कारज जीवन-मरण, यही याचना आज।
यही याचना आज, भाव शुभ मन में जागें,
लोभ, कुटिलता, काम, निशाचर सारे भागें।
राम नाम के कँवल, खिलें मन-निर्मल जल में,
कभी न व्यापे मोह, रहूँ बस रामा दल में।


बनवासी श्री राम ने, किया दुष्ट संहार।
सब साधन संपन्न हम, मिटे न भ्रष्टाचार।
मिटे न भ्रष्टाचार, भूल हम जान न पाए,
पाया तो जनतंत्र, मंत्र सम्मान न पाए।
जले हृदय का दीप, अमावस, पूरनमासी,
अनाचार, कुविचार, करें सबको बनवासी।

- डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा


 

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