विजयदशमी की कविताओं का संकलन
 

 

घट-घट वासी राम (घनाक्षरी)

कण में विकण में, विकण कोटि खंड में भी,
अंतहीन ब्रह्मरूप राम विद्यमान हैं !
जीव में अजीव में, सचेत में अचेत में भी,
वे ही ‘आत्म-अंश’ रूप व्यापक समान हैं !
राम-नाम सुख-धाम, राम-धुन आठों याम,
मोक्ष हेतु राम-नाम, ये ही ब्रह्मज्ञान हैं !
विष्णु का स्वरूप राम, सृष्टि व विराम राम,
देवों के भी देव राम, प्राण के भी प्राण हैं !

मन-मन, क्षण-क्षण, राम करते रमण,
धर्म-रक्षा त्यागी रूप, जग में महान हैं !
सत्य-तप-व्रत-शील, करुणा-संस्कार रूप,
भक्ति-भाव-सार रूप, भक्त-जन मान हैं
भूपों में हैं श्रेष्ठ भूप, रूपों में विराट रूप,
रूप हैं, अरूप, अनुपम दिनमान हैं !
राम आस, ‘विसवास’, राम तृप्ति, राम प्यास,
करें घट-घट वास, यही पहचान हैं !

मन-कर्म-वचन, वरण शुचि आचरण,
हिन्दू संस्कृति के संरक्षक कहलाते हैं !
‘मानस’ के नित्य-पाठ, ‘रामलीला’ मंचन से,
देश-परदेश-लोग राम-गुण गाते हैं !
राम ही विधि-विधान, राम सर्वशक्तिमान,
सकल गुणों की खान, राम माने जाते हैं !
स्वर्ग से महान ‘हिन्द’, देव-दिव्य देश निज,
अवतार ‘ईश’ के भी जन्म लेने आते हैं !

ऋषि-मुनि, खास-आम, पाते हैं परम धाम,
कह-कह, राम-राम, दुःख सब हर गए !
देखते न ये चरित्र, बस भाव हों पवित्र,
सुर या असुर सब, पाते हुए वर गए !
राम-नाम का ही जाप, मेटता रहा है पाप,
मर्यादा-आदर्श आप, धरा बीच धर गए !
लोक कहे ‘भगवान’, ‘हिन्द’ का है यश-गान,
‘वाल्मीकि’ मरा-मरा, कह-कह तर गए !

राम पूजा, राम श्रद्धा, राम ‘आसथा’ प्रतीक,
राम-इतिहास कहीं बह नहीं पायेंगे !
लिख गए इतिहास, भवभूति, कालिदास,
‘वाल्मीकि’ मिथ्या, यह कह नहीं पायेंगे !
कहा, तो न देना दोष, जोश में न गवाँ होश,
जन-जन क्रोध बिना रह नहीं पायेंगे !
राम है अपार प्यार, असुरों का हैं संहार,
राम की विकट मार, सह नहीं पायेंगे ! 5।

प्राण-प्राण, साँस-साँस, जिनमें बसे हैं राम,
ऐसे सन्त जनों को ललाम लिखता हूँ मैं !
अब्दुल रहीम, ताज बीबी और रसखान,
लगन के पक्के-सच्चे नाम लिखता हूँ मैं !
राम का चरित्र रच ‘मानस’ बुझाए प्यास,
जग-श्रेष्ठ कवि को निष्काम लिखता हूँ मैं !
राम में रमा हुआ है, ‘तुलसी’ का अंग-अंग,
खिले-खिले ‘मानस’ पे राम लिखता हूँ मैं ! 6।

प्रेम रूपी सागर में, राम-धुन गागर में,
भारत-धरा को धन्य, धाम लिखता हूँ मैं !
भ्रातृ-भक्ति भरत-सी, शक्ति हनुमत जैसी,
इनको ‘हसन’ का सलाम लिखता हूँ मैं !
राम से लगाके नेह, भूल गयी निज देह,
वैदेही का ‘भूमिसुता’ नाम लिखता हूँ मैं !
राम को प्रणाम, राम-नाम को प्रणाम और
राम के गुलाम को प्रणाम लिखता हूँ मैं !

‘बालू’ हो रहा प्रचण्ड, ‘निधि’ को हुआ घमण्ड,
करने को खण्ड-खण्ड, लेना अवतार राम !
सीता की बचाने लाज, घायल जटायु आज,
तार-तार है समाज, सुन लो पुकार राम !
बढ़ी जन-जन पीर, रोये सरयू के तीर,
आकर बँधाओ धीर, दया के आधार राम !
आपका जो अवतार, रावण रहे नकार,
आके फिर एक बार, करना संहार राम !

- अलीहसन मकरैंडिया


 

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