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प्रश्नवाची मन हुआ
है
प्रश्नवाची
मन हुआ है, हैं सुलगते अभिकथन
क्या मुझे अधिकार है ये
मैं दशानन को जलाऊँ ??
खींच कर
रेखा अहम् की शक्त वर्तुल से घिरी हूँ
आइना भी क्या करे जब मैं तिमिर की कोठरी हूँ
दर्प की आपाद मस्तक स्याह चादर ओढ़ कर
क्या मुझे अधिकार है
'दम्भी 'दशानन को बताऊँ ??
झूठ, माया-मोह
ईर्ष्या के असुर नित रास करते
स्वार्थ की चिंगारियों से प्रिय सभी रिश्ते सुलगते
पुण्य पापों को बता कर सत्य पर भूरज उड़ा
क्या मुझे अधिकार है
'पातक' दशानन को जताऊँ ??
अपहरित
अंतःकरण की मुक्ति हित बलदेव बन के
बालने हैं अब दशानन सम सभी दुर्दैव मन के
बिन स्वयं हो मुक्त दुर्गुण के असित प्रतिबन्ध से
क्या मुझे अधिकार है
दुर्नय दशानन के दिखाऊँ ??
--सीमा अग्रवाल |
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