विजयदशमी की कविताओं का संकलन
 

 

बहुत हो गया ऊँचा रावण

बहुत हो गया ऊँचा रावण, बौना होता राम,
मेरे देश की उत्सव-प्रेमी जनता तुझे प्रणाम।

नाचो-गाओ, मौज मनाओ, कहाँ जा रहा देश,
मत सोचो, कहे की चिंता, व्यर्थ न पालो क्लेश।
हर बस्ती में है इक रावण, उसी का है अब नाम।

नैतिकता-सीता बेचारी, करती चीख-पुकार,
देखो मेरे वस्त्र हर लिये, अबला हूँ लाचार।
पश्चिम का रावण हँसता है, अब तो सुबहो-शाम।

राम-राज इक सपना है पर देख रहे है आज,
नेता, अफसर, पुलिस सभी का, फैला गुंडा-राज।
डान-माफिया रावण-सुत बन करते काम तमाम।

महँगाई की सुरसा प्रतिदिन, निगल रही सुख-चैन,
लूट रहे है व्यापारी सब, रोते निर्धन नैन।
दो पाटन के बीच पिस रहा अब गरीब हे राम।

बहुत बढा है कद रावण का, हो ऊँचा अब राम,
तभी देश के कष्ट मिटेंगे, पाएँगे सुख-धाम।
अपने मन का रावण मारें, यही आज पैगाम।

कहीं पे नक्सल-आतंकी है, कही पे वर्दी-खोर,
हिंसा की चक्की में पिसता, लोकतंत्र कमजोर।
बेबस जनता करती है अब केवल त्राहीमाम।।

--गिरीश पंकज


 

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