सबके मन भाते हैं देखो
खिले-खिले वासंती फूल
शीतल ऋतु अब विदा हो रही
सखियाँ गहरी नींद सो रहीं
देख रहीं साजन के सपने
खुशियों के झूले में झूल
दूर गगन में कोई बादल
भटक रहा ज्यों प्रेमी पागल
सभी दिशाओं में मंडराता
जैसे मंजिल गया हो भूल
हर टहनी पर फूटी कोंपल
सँवरा है धरती का आँचल
किंतु साथ में उग आए हैं
तीखी चुभन लिए कुछ शूल
स्नेह-भाव मन में जग जाते
और मिलन की आस जगाते
ऐसे में जाने-अनजाने
सब रह जाते धरे उसूल
- सुरेन्द्रपाल वैद्य |