सूरज खेल रहा बदरी संग
आँख मिचौनी
ऋतु वसंत है अँगड़ाई में
हरियाली है हँसमुख
हवा वसंती तरु-पल्लव से
बतियाती है सुख-दुख
आगति की दिनचर्या लिखती
कली-खतौनी
सिर पर उठा लिया शाखों ने
पंखुड़ियों का खाँचा
कोयल ने पी-पत्रकार का
लेख सामयिक बाँचा
केसर का घर छोड़ परागण
चला ‘बरौनी’
लिखने बैठा पत्र निमंत्रण
फसलों का उद्घाटन
सरसों कहती लिखना, अलसी
पहने नीली साटन
सुरभि न्योतनी बाँट रही है
बनी पठौनी
भँवरों ने छक-छककर खाया
मकरंदों का पेठा
अड़हुल खड़ा रहा द्वारे पर
बाँधे लाल मुरेठा
फागुन झूमा मधुशाला में
लगी मनौनी |