ओ मधुरमास
आओ ढूँढने चलें
बसंत को
पवन सुहानी मन भायी
मिली नहीं फूलों की बगिया
स्वर कोयल के कर्ण बसे
छुपी रही खटमिट्ठी अमिया
यादों के पट खोल सखे
ले उतार खुशियाँ अनंत को
ओ कृष्ण-रास
ता-थइया करवाओ
नर्तक बसंत को
मन देहरी पर जा सजी
भरी अँजुरी प्रीत रंगोली
मिलन विरह की तान लिए
प्रिय गीत में बसी है होली
कह सरसों से ले आएँ
तप में बैठे पीत संत को
ओ फाग- मास
सुर-सरित में बहाओ
गायक बसंत को
अँगना में जब दीप जले
पायल छनकाती भोर जगे
हँसी पाश में लिपट गयी
बोल भी बने हैं प्रेम पगे
कँगन परदे की ओट से
पुकार उठी है प्रिय कंत को
ओ नेह- आस
चतुर्दिक सुषमा भरो
प्रेमिल बसंत को
न तो बैर की झाड़ बढ़े
न नागफनी के अहाते हों
टपके छत रामदीन की
दूजे कर उसको छाते हों
रोप बीज सुविचारों के
करो सुवासित दिग्दिगंत को
ओ आम- खास
भरपूर रस से भरो
मीठे बसंत को |