खिले टेसू के नखरे
              - रमा प्रवीर वर्मा

 

खिले टेसू के नखरे बोलते हैं
हवा में रंग बसन्ती घोलते हैं

गज़ब रंगत लिए सारे बगीचे
बिछाए हैं ज्यों फूलों ने गलीचे
लिखें जब तितलियाँ भी शायरी तब
भ्रमर होकर नशीले डोलते हैं

कहीं खेतों में सरसों फूलती है
कहीं अमुआ की डाली झूलती है
मधुर मकरन्द के कलशे कहीं पर
किसी माली के सपने तौलते हैं

घुली मौसम में भी रंगोलियाँ हैं
भली कोयल की लगती बोलियाँ हैं
बसन्ती मन हवाओं की छुअन से
नयन की बन्द खिड़की खोलते हैं

धरा पर हर तरफ उल्लास छाया
करो स्वागत सखी मधुमास आया
गुलाबी ठंड का आँचल पकड़कर
कई सपने सजीले डोलते हैं

खिले टेसू के नखरे बोलते हैं
हवा में रंग बसन्ती घोलते हैं

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