पीत बरन
चेहरे पर
छाया है थकान का साया
कब से खड़ा बसंत दुआरे
मन में सकुचाया
फोन किया है
लड़के ने
कुछ उखड़ा-उखड़ा है
लगी नौकरी छूट रही है
उसका दुखड़ा है
यहाँ बहू का मुखड़ा
कुछ ज्यादा ही मुरझाया
मटमैली सी
धूल चढ़ी
गेंदों के फूलों पर
और दिख रही जंग
गैस के दोनों चूल्हों पर
धुआँ उठा आँगन से
जाकर मन में गहराया
लौट रही
बिटिया कॉलेज से
डरी हुई सहमी
रोज मिलें उसको रस्ते में
कुछ पागल वहमी
दरवाजे का आम
अचानक फिर से बौराया |