कोपलों ने शाख को फिर
चूमकर कुछ यूँ कहा
आ गया मौसम सुहाना
प्यार का इज़हार का
मस्तियों के फाग का
ऋतुराज स्वागत कर रहा है
थामकर कूंची पवन की
नित नए रंग भर रहा है
भ्रमर फिर खिलती कली पर
रीझकर रचने लगा
छंद नव शृंगार का
मान का मनुहार का
पीत पुष्पों ने धरा के
गाल पर हल्दी चढा दी
बाँह किरनों ने पसारी
सुनहरी चूनर ओढ़ा दी
डालियों का मन हरा सा
झूमकर गाने लगा
गीत शुभ सत्कार का
नेह का अभिसार का |