धीरे धीरे उतर क्षितिज से
आ वसंत-रजनी
तारकमय नव वेणीबंधन
शीश-फूल कर शशि का नूतन
रश्मि-वलय सित घन-अवगुंठन
मुक्ताहल अभिराम बिछा दे
चितवन से अपनी
पुलकती आ वसंत-रजनी
मर्मर की सुमधुर नूपुर-ध्वनि
अलि-गुंजित पद्मों की किंकिणि
भर पद-गति में अलस तरंगिणि
तरल रजत की धार बहा दे
मृदु स्मित से सजनी
विहँसती आ वसंत-रजनी
पुलकित स्वप्नों की रोमावलि
कर में हो स्मृतियों की अंजलि
मलयानिल का चल दुकूल अलि
चिर छाया-सी श्याम, विश्व को
आ अभिसार बनी
सकुचती आ वसंत-रजनी
सिहर सिहर उठता सरिता-उर
खुल खुल पड़ते सुमन सुधा-भर
मचल मचल आते पल फिर फिर |