फागुनी दोहे
              - शशि पुरवार

 

फगुनाहट से भर गई, मस्ती भरी उमंग
रोला ठुमरी दादरा, लगे थिरकने अंग

फागुन आयो री सखी, फूलों उड़ी सुगंध
बौराया मनवा हँसे, नेह सिक्त अनुबंध

मौसम में केसर घुला, मदमाता अनुराग
मस्ती के दिन चार हैं, फागुन गाये फाग

फागुन में ऐसा लगे, जैसे बरसी आग
अंग अंग शीतल करे, खुशबु वाला बाग़

हरी भरी सी वाटिका, मन चातक हर्षाय
कोयल कूके पेड़ पर, आम सरस ललचाय

सूरज भी चटका रहा, गुलमोहर में आग
भवरों को होने लगा, फूलों से अनुराग

चटक नशीले मन भरे, गुलमोहर में रंग
घने वृक्ष की छाँव में, मनवा मस्त मलंग

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