किसलय लें अँगड़ाइयाँ, पुष्प पढ़ें
शृंगार
पी वसंत-रस माधुरी, झूम रहा संसार
पंख बिना उड़ने लगी, पहन पीत वह चीर
कानों में ऋतु-शीत के, क्या कह गया समीर
सुरभित हैं अमराइयाँ, मीठी हुई बयार
कोयल बिरहा कूक से, छेड़ रही मन-तार
गिन-गिन बीते दिवस तब, सरसों आई गोद
ओढ पीयरी माँ धरा, निरखे होकर मोद
पीत-वर्ण जोड़ा पहन, पगड़ी फूल अनंत
ग्रीष्म-वधू को ब्याहने, देखो चला बसंत
जंगल में मंगल लगे, तब जीवन पर्यंत
सभी ओर आनंद हो, मन में अगर बसंत |