महका बागों में नवल, बासंती त्योहार
लगा जमीं की गोद में, रंगों का अंबार
आम गए बौराय अब, कोयल कूकी डाल
गूँज गयी दस दिशिन में, तन-मन मीठी ताल
खिले बसंत के प्रेम में, महफ़िल में सब रंग
आँखों से आँखें मिलीं, मन में उठी उमंग
पीला आँचल ओढ़ के, लगती धरा अनूप
पहना धानी घाघरा, ले दुल्हन का रूप
फूलों वाली है गली, मधुकर वाली प्रीत
अब कोकिल की कूक में, फूटे मधुरम गीत
उन्मादित धरती हुई, बौर दिखे चहुँ ओर
पी-पी-पी की टेर से, करे पपीहा शोर
महकीं मन-पगडंडियाँ, चहका है शृंगार
चली रूप, रस, गंध की, मादक मन्द बयार
- डॉ. मंजु गुप्ता |