लौट रहा बसंत 
              - मंजुल भटनागर

 

पतझड़ की डालियों पर
लौट रहा बसंत
प्रेम प्रीत बरस रही खुशियाँ अनंत
चिड़ियों का संगीत, सुन रहा आकाश
बुन रही शाखों पर, घोंसले स्वछंद.

मंदिर का वाद्य बजा
माँ सरस्वती की अराधना सछंद
प्रेम पगा ज्ञान बखानते
उद्धव हुए मौन
गोपियों देख, विश्वास अखंड
राधा संग कृष्ण का प्रेम बरस रहा दिगन्त

बासंती हवा रूहानी है
चेहरा छू कर गई, चाल बनी मस्तानी है
देवदास बन रहा कोई, पारो दिवानी है.
पत्तों पर लिखी जा रही प्रेम की भाषा
शब्द शब्द जोड़, भाव खोलती नजरें
चाँद-तारे छूने की अभिलाषा है, तैयारी है

लौट रहे हैं, कुछ रूठे रिश्ते अँधेरी रात के
और लौटती है प्यारी सी बिटिया ससुराल से
देर रात, घर आँगन फलांगती आती है बुआ
मिलने भाई को मायके
बचा लेती है अपना सिकुड़ता पीहर
रंगों को मुट्ठी में भरे
खुशी के रंग बिखेरती
हँसती है, रोती है
रूह सहला लेती है,
और टेसू पारिजात बन लौटता है बसंत

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