दिन बने वसंती
              - कल्पना रामानी
 

 

घटे शीत के भाव-ताव दिन बने बसंती
गुलशन हुए निहाल डाल गुल खिले बसंती

पेड़-पेड़ ने पूर्ण पुराने वस्त्र त्यागकर
फिर से हो तैयार गात पर धरे बसंती

अमराई में जा पहुँची पट खोल कोकिला
जी भर चूसे आम मधुर रस भरे बसंती

पीत-सुनहरी सरसों ने भी खूब सजाए
खेत-खेत में रोप-रोप सिलसिले बसंती

फुलवारी की गोद भरी नन्हें मुन्नों से
किलकारी के रंग हवा में घुले बसंती

कलिकाओं की सरस रागिनी सुनकर सुर में
भँवरों ने दी ताल तराने छिड़े बसंती

जन-जन से मन जोड़ मिला कंचन-कुसुमाकर
उगी सुहानी भोर उमंगें लिए बसंती

कवियों की भी रही न पीछे कलम “कल्पना”
गज़लों ने भी शेर खूब कह दिये बसंती

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