बरसते पानी में
बरसते पानी में
जैसे गलती है मिट्टी
तुम्हारी याद में गलता है मेरा मन
बरसते पानी में
पत्तों में अनुनादित
जैसे झरते हैं जलकण
तुम्हारे वचनामृत की
एक-एक बूँद
पीता है मेरा मन
बरसते पानी में
जैसे तृप्त होती है धरती
तुम्हारे पावन स्मरण में
तृप्त होते हैं मेरे नयन
मेरा अंतर्मन
-रामप्रताप खरे
28 अगस्त 2001
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बारिश की बूँदें
ये झूमता सावन हरियाला मौसम
छम-छम बरसातें बारिश की बूँदें
नींद उड़ातीं चैन छीने जातीं
दिल को लुभातीं बारिश की बूँदें
अगन लगातीं प्यास जगातीं
मन को तरसातीं बारिश की बूँदें
खूब गरजतीं बेशुमार बरसातें
शोर मचातीं बारिश की बूँदें
चंचल, शीतल, हँसातीं, रुलातीं
तेरे मेरे, प्यार-सी बारिश की बूँदें
- निधि
07 सितंबर 2001
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