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वर्षा महोत्सव

वर्षा मंगल
संकलन

छोटी कविताएँ

 बरसते पानी में

बरसते पानी में
जैसे गलती है मिट्टी
तुम्हारी याद में गलता है मेरा मन
बरसते पानी में
पत्तों में अनुनादित
जैसे झरते हैं जलकण
तुम्हारे वचनामृत की
एक-एक बूँद
पीता है मेरा मन
बरसते पानी में
जैसे तृप्त होती है धरती
तुम्हारे पावन स्मरण में
तृप्त होते हैं मेरे नयन
मेरा अंतर्मन

-रामप्रताप खरे
28 अगस्त 2001

बारिश की बूँदें

ये झूमता सावन हरियाला मौसम
छम-छम बरसातें बारिश की बूँदें

नींद उड़ातीं चैन छीने जातीं
दिल को लुभातीं बारिश की बूँदें

अगन लगातीं प्यास जगातीं
मन को तरसातीं बारिश की बूँदें

खूब गरजतीं बेशुमार बरसातें
शोर मचातीं बारिश की बूँदें

चंचल, शीतल, हँसातीं, रुलातीं
तेरे मेरे, प्यार-सी बारिश की बूँदें

- निधि
07 सितंबर 2001

 

  

वर्षा ऋतु बावरी

पागल-सी यह बूँद बाँवरी
छूकर आँख मेरी थर्राई
ठहरी वहाँ जो कुछ पल उनपर
लहराकर फिर नीचे आई
रुककर पल भर को गालों पर
लगा वो शायद कुछ शरमाई
पल दो और रुकी जैसे वो
लगा मुझे वो है बिखराई
अमृत पान किया उसने या
विष दुख का वो पीने आई
पागल-सी वह बूँद बाँवरी
आँख का मोती ना बन पाई

- देवी नागरानी
21 अगस्त 2005

  बरसात

अम्मा ज़रा देख तो ऊपर
चले आ रहे हैं बादल
गरज रहे हैं बरस रहे हैं
दीख रहा है जल ही जल

हवा चल रही क्या पुरवाई
झूम रही है डाली-डाली
ऊपर काली घटा घिरी है
नीचे फैली हरियाली

भीग रहे हैं खेत बाग बन
भीग रहे हैं घर आँगन
बाहर निकलूँ मैं भी भीगूँ
चाह रहा है मेरा मन

- अज्ञात
3 सितंबर 2001

p`itiËyaa pZ,oM p`itiËyaa ilaKoM sahayata

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