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वर्षा महोत्सव

वर्षा मंगल
संकलन

वर्षांत के बादल

जा रहे वर्षांत के बादल

हैं बिछुड़ते वर्ष भर को नील जलनिधि से,
स्निग्ध कज्जलिनी निशा की उर्मियों से,
स्नेह-गीतों की कड़ी-सी राग रंजित उर्मियों से,
गगन की शृंगार-सज्जित अप्सराओं से,
जा रहे वर्षांत के बादल

किस महावन को चले
अब न रुकते अब न रुकते ये गगनचारी
नींद आँखों में बसी गति में शिथिलता
किस गुफ़ा में लीन होंगे-
सांध्य-विहगों से थके डैने लिए भारी

साथ इनके जा रहा
अगणित विरहिणी विरहियों का दाह
दे रही अनिमेष नयनों से हरित वसुधा विदाई
किस सुदूर निभृत कुटी में-
शुजिता सुधि की इन्हें फिर याद आई
भर गई आ रिक्त कानों में
किस कमल वन में अनिदित
शारदीया की करुण चंचल रुलाई
जा रहे अलोक-पथ से मंद गति
वर्षांत के बादल

हैं सलिल प्लावित नदी-नद-ताल-पोखर
वेग-विह्वल झर रहे गिरि-स्रोत निर्झर
दे भरे मन से विदा कर कुसुम किरणों से नमन
छोड़कर अंकुरित नूतन फुल्ल खेत
छोड़ उत्सुक बंधुओं के नेत्रों का प्यार
छोड़ लघु पौधे व्यथातुर शस्य शालि अपार
जा रहे वर्षांत के बादल

खोह अंजन की कहाँ वह गुरु गहन
आगार वह विश्राम-मुग्ध विराम की
जा रहे जिसमें चले थे थके वन-पशु से
प्यास होठों पर लिए किसके मिलन की
भर जगत में नव्य जीवन
जा रहे किस प्रिया की सुधि से घिरे
नयी आकांक्षा भरे वर्षांत के बादल
जा रहे वर्षांत के बादल।

रामेश्वर शुक्ल 'अंचल'
15 सितंबर 2003

  

यादों का प्रदेश

सावन में बरखा जब
मेरे ह्रदय की धरती
पर बरसे
विहग-वृंद चहचहाता है
मस्तिष्क तरंगे छेड़
शीतल वायु
अठखेलियाँ करती
टहलती है
मासूमियत से आसपास
दरिया तट पर
दो परछाइयाँ
करने लगती है बातें
इंद्रधनुष झाँकता है
गगन से
व सावन अपनी
प्रेयसी ऋतु से
मिलने जाता है
मौन संवेदना प्रकट
करती हैं आँखें
हाँ प्रिय!
यादों के प्रदेश में
रहता हूँ मैं

सुनील साहिल
15 सितंबर 2003

सावन की ऋतु आई

सूरज की अपनी एक आग थी
अभी तो धूप सर पर थी
एक अरसे से तपती रही
सीने में दरारे सहती रही
फिर भी फूलों को महकाती रही
अभी और धरती को तपना था
अभी क्या और दर्द सहना था
किसने सींचा अपने आँचल से
इंसान ने नहीं पूछा फूलों से
बड़ी आसानी से कह दिया
अब धरती बंजर हो गई
सूरज भी शर्माया
समेट ली अपनी आग की झोली
बुलाई काले बादलों की टोली
छम-छम, छम-छम
पायल छनकाई बूँदों की
सप्त रंगों से आसमाँ सजाया
यों धरती का मन बहलाया
धानी चुनर में धरती मुस्काई
लो सावन की ऋतु आई।

मीना छेड़ा
15 सितंबर 2003

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