मौसम की वो पहली बारिश
मिट्टी की वो सौंधी खुशबू
सावन का वो पहला बादल
उस पर घनघोर घटा हर सूँ।
बिजली का गर्जन, बादल का कंपन
अंतस में सिहरता सिमटता मन
पपीहे की पिहू मयूर का नर्तन
कुलाँचे भरता मन का हिरन।
अँधेरे में जुगनू की टिमटिम
हल्की-हल्की बूँदों की रिमझिम
पात-पात पर डोलती हवा
सरसर के गीत घोलती हवा
आँख मिचौली करता चाँद
हँसी ठिठोली करता चाँद
बादल का घूँघट ओढ़े
छुपता और निकलता चाँद।
भीनी-भीनी चंपा की महक
झीनी-झीनी रजनी की लहक
सुनकर बादलों का हर्ष नाद
मन में छाया जाए उन्माद
-समता आर्या
12 सितंबर 2005
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