बारिश
जब बरसती है बरसात टूट के
उसकी ये दिवानगी लगती भली
हर खेत आँगन साफ़ कर पानी गिरा
पात गात दिन रात सारे धो चुकी
फिर निचोड़ कर बदलों को धूप में
अंबर के आँगन सूखने को टाँगती
देती हवाओं को पतंगें बादलों की
लाल पीले नीले काले रंग वाली
और कभी दादी की यों लकड़ी उठा
बिजली की तेज़ी से कडक कर डाँटती
जब बरसती है बरसात टूट के
उसकी ये दीवानगी लगती भली
बरखा रानी
बरखा ने चुपके से आ
पेड़ पे मोती बिछा
हँस के कहा, "चंचल पवन
ले आ सजा अपना बदन
फिर तू मुझको साथ ले
चल प्यार की वादी तले
कुछ मचाएँ शोर हम
मिल आ नचाएँ मोर हम
मेरी कमर पे थाप दे
हम यों गगन को नाप लें।
किरणों के आने से पहले
जो कहना है मुझसे वो कह ले
फिर नहीं रु पाऊँगी
मैं भाप बन ऊड़ जाऊँगी।"
-शार्दूला
11 सितंबर 2005
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