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वर्षा मंगल
संकलन

पानी में पौर अगन नाचे

 

सावन चहुँ ओर सघन नाचे
चंचल मनमोर मगन नाचे।

सन-सन की बीन बजे मेघों का मांदर
झम-झम की झांझ और रिमझिम का झांझर
चपला चितचोर नयन नाचे।
सावन चहुँ ओर सघन नाचे

खेतों में धान हँसे बागों में कलियाँ
तरुओं की रानी की वन-वन रंगरलियाँ
यौवन मदभोर भुवन नाचे।
सावन चहुँ ओर सघन नाचे

कानन के हाथ बँधी लत्तर की राखी
जाने न नाम रटे कोई बन पाँखी
पानी में पौर अगन नाचे।
सावन चहुँ ओर सघन नाचे

फूलों पर तितली का रंग रंगा डैना
नाचती सुहागिन ज्यों देख-देख ऐना
आँखों की कोर गगन नाचे।
सावन चहुँ ओर सघन नाचे

-हंसकुमार तिवारी
11 सितंबर 2005

  

बारिश

जब बरसती है बरसात टूट के
उसकी ये दिवानगी लगती भली

हर खेत आँगन साफ़ कर पानी गिरा
पात गात दिन रात सारे धो चुकी
फिर निचोड़ कर बदलों को धूप में
अंबर के आँगन सूखने को टाँगती

देती हवाओं को पतंगें बादलों की
लाल पीले नीले काले रंग वाली
और कभी दादी की यों लकड़ी उठा
बिजली की तेज़ी से कडक कर डाँटती

जब बरसती है बरसात टूट के
उसकी ये दीवानगी लगती भली

बरखा रानी

बरखा ने चुपके से आ
पेड़ पे मोती बिछा
हँस के कहा, "चंचल पवन
ले आ सजा अपना बदन
फिर तू मुझको साथ ले
चल प्यार की वादी तले
कुछ मचाएँ शोर हम
मिल आ नचाएँ मोर हम
मेरी कमर पे थाप दे
हम यों गगन को नाप लें।
किरणों के आने से पहले
जो कहना है मुझसे वो कह ले
फिर नहीं रु पाऊँगी
मैं भाप बन ऊड़ जाऊँगी।"

-शार्दूला
11 सितंबर 2005

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