सावन सूखा माघ लू
जेठ मास बरसात।
नेताओं से हो गए
मौसम के हालात।
नदिया प्यासी रह गई
बारिश में इस बार।
जाने क्यों आया नहीं
सागर मेरे द्वार।
बद से बदतर हो गए
पल भर में हालात।
जाने क्या-क्या कह गई
मुंबई की बरसात।
आख़िर हैं किस बात के
मालिक ये संकेत।
सावन भादों मेह की
राह देखते खेत।
बादल जब पढ़ने लगे
बारिश वाले छंद।
बूँदों में आने लगा
दोहों-सा आनंद।
-संजीव गौतम
06 सितंबर 2005
सच बताना
वर्षा, सच बताना,
तुम्हें भी रहता है ना
बरसने का इंतज़ार
तुम्हें ये सच पता है
चातक है निर्भर
तुम्हारी पहली बूँद पर
नाचता है मोर भी
तुम्हारे आगमन पर
वृक्ष झूमकर कहते हैं
स्वागतम, स्वागतम
तुम्हें अच्छा लगता है
अपना ये मदिर स्वागत
तभी तो आती हो हर साल
बिना भूले, बिना नागा
छमाछम, छमाछम।
-मधुलता अरोरा
06 सितंबर 2005
|