रोए पर्वत
चूम कर मनाने
झुके बादल
हल्की फुहार
रिमझिम के गीत
रुके न झड़ी
बादल संग
आँख मिचौली खेले
पागल धूप
प्रकोपी गर्मी
मचा उत्पात अब
शांत हो भीगी
झुका के सर
चुपचाप नहाए
शर्मीले पेड़
बदरा तले
मेंढक की मंडली
जन्मों की बातें
ओढ़ कंबल
धरती आसमान
फूट के रोए
- मानोशी
04 सितंबर 2005
|