अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

वर्षा महोत्सव

वर्षा मंगल
संकलन

     सावन आया

 

सावन आया,
श्वेत, श्याम, रूपा, चंपावर्णी
पावस-घन लाया।

खुशियों के नव पल्लव फूटे
तृण-तृण में नव स्पंदन
प्रकृति हरित वसना प्रतिपल
करती धरती पर नर्तन
चपला की चंचल है काया
सावन आया।

झूल रहीं सखियाँ-सहेलियाँ
झूला पेंग बढ़ाकर
नाच उठे अनगिन मयूर
वन में, मन में इठलाकर
भू पर इंद्रधनुष लहराया
सावन आया।

गूँजी चौबारों में कजरी
तीज, मल्हारों की धुन
रिमझिम-रिमझिम मेघा आए
दूर देश के पाहुन
सरिता का जीवन इठलाया
सावन आया

-सूर्यकुमार पांडेय

04 सितंबर 2005

  

वर्षा
(सात हाइकु)

रोए पर्वत
चूम कर मनाने
झुके बादल

हल्की फुहार
रिमझिम के गीत
रुके न झड़ी

बादल संग
आँख मिचौली खेले
पागल धूप

प्रकोपी गर्मी
मचा उत्पात अब
शांत हो भीगी

झुका के सर
चुपचाप नहाए
शर्मीले पेड़

बदरा तले
मेंढक की मंडली
जन्मों की बातें

ओढ़ कंबल
धरती आसमान
फूट के रोए

- मानोशी

04 सितंबर 2005


इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter