बरखा की रिमझिम का मीठा-सा गीत,
झरनों की कलकल का मादक संगीत,
अंबुआ की डाली पर कोयल का शोर।
बरखा की भोर।।
अंबर से धरती तक पानी का जाल,
बागों में झुकी-झुकी जामुन की डाल,
लछुआ की देहरी में सटे खड़े ढोर।
बरखा की भोर।।
बादल के घूँघट से सूरज की किरण,
झाँक रही, जैसे हों हिरणी के नयन,
बाँसो के जंगल में नाच रहे मोर।
बरखा की भोर।।
-नरेंद्र दीपक
26 अगस्त 2005
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