कैसे करूँ मैं स्वागत तेरा बता ओ बरखा रानी
घर की छत गलती है जब-जब बरसे पानी
बारिश में लगता है मौसम बड़ा सुहाना
बूँद-बूँद ताल बजाए पंछी गाएँ गाना
मैं सोचूँ, कैसे चूल्हे की आग जलानी
ठंडी-ठंडी बौछारें हैं पवन चले घनघोर
बादल गरजे उमड़-घुमड़ नाचे वन में मोर
मन मेरा सोचे, कैसे गिरती दीवार बचानी
इंद्रधनुष की छटा बिखेरी बरसा पानी जम के
पाँवों में नूपुरों को बाँधे बरखा नाची छम से
मैं खोजूँ वो सूखा कोना जहाँ खाट बिछानी
प्रकृति कर रही स्वागत तेरा कर अपना शृंगार
पपीहे ने किया अभिनंदन गा कर मेघ मल्हार
मैं भी करता स्वागत तेरा भर अँखियों में पानी
आ जा ओ बरखा रानी!
आ जा ओ बरखा रानी!
- हेमंत रिछारिया
23 अगस्त 2005
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